
*प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ का कल स्वास्थ्य महानिदेशालय पर धरना
*प्रदेश भर से भारी संख्या में चिकित्सक धरना व बैठक मे होगें शामिल
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ उत्तराखंड ने शुक्रवार को होने जा रहे स्वास्थ्य महानिदेशालय धरने व प्रान्तीय बैठक की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। जिसमें प्रदेश भर से बड़ी संख्या में चिकित्सक शामिल होगें। इस बात की जानकारी प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ उत्तराखंड के जिलाध्यक्ष डॉ. यशपाल तोमर ने दी।
उन्होने कहा कि धरने व बैठक में पौड़ी से 20, नैनीताल से 10, रुद्रप्रयाग से 12, उत्तरकाशी से 12, हल्द्वानी से 6, चम्पावत से 10, ऋषिकेश से 10, मसूरी से 10, चमोली से 8, कोटद्वार बेस चिकित्सालय से 4, बागेश्वर से 6, ऊधमसिंह नगर से 6, हरिद्वार से 17, अल्मोड़ा से 10, नरेंद्रनगर से 7, टिहरी से 16, रुड़की से 10 तथा देहरादून तथा ऋषिकेश से 30 चिकित्सकों ने अभी तक प्रतिभाग करने की सहमति दे दी है।
डॉ. तोमर ने कहा कि सरकार को समझना होगा कि चिकित्सक वर्ग इतना आक्रोशित और हतोत्साहित हो चुका है कि सब काम धाम घर परिवार छोड़ कर सब लोगों को देहरादून आकर धरना देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में पूरे प्रदेश से चिकित्सक परेशान होकर इस तरह देहरादून में एकत्र हो रहे हैं, क्यूँकि हम हमेशा से अपनी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी समझते आए हैं और हमेशा जनहित में मरीजों के हित में आंदोलन वापस लेते आए हैं।
उन्होंने कहा कि हम सब लोग पहले भी आंदोलन में बहुत आगे बढ़कर भी हड़ताल वापस ले चुके हैं। शासन और सरकार हमारी बातों से सहमत है और हमारी मांगों पर सहमति दे दी गई थी , डीपीसी और एसडीएसीपी आंशिक रूप से कर दी गई, बहुत से चिकित्सक अभी भी पदोन्नति के इंतज़ार में बैठे हैं और इंतज़ार लंबा ही होता जा रहा है , एसडीएसीपी में कुछ चिकित्सकों को शिथिलीकरण का लाभ दिया जाना था, मगर वो पिछले कई माह से लटका ही हुआ है।
जिलाध्यक्ष ने कहा कि हमारी तीन प्रमुख माँगें पर्वतीय क्षेत्रों में तैनात विशेषज्ञ चिकित्सकों को चिकित्सा शिक्षा की तर्ज पर पूर्ण वेतन का पचास प्रतिशत पर्वतीय भत्ता अनुमान्य करना( एमबीबीएस तथा बीडीएस को भी पूर्व की भांति दुर्गम भत्ते की व्यवस्था करना), अल्मोड़ा टिहरी नैनीताल और मसूरी को पूर्व की भांति सुगम से पुनः दुर्गम घोषित करना (जिस में सरकार पर कोई अतिरिक्त वित्तीय भार भी नहीं पड़ रहा) तथा एसडीएसीपी में चिकित्सकों को अनिवार्य पर्वतीय सेवा में एक बार शिथिलीकरण दिया जाना, जोकि लगातार दिया जाता रहा है तथा पिछले चार बार एसडीएसीपी के शासनादेशों में 160 से भी ज़्यादा चिकित्सकों को दिया जा चुका है।
उन्होेने कहा कि उपरोक्त सभी विषयों पर महानिदेशालय से समुचित प्रस्ताव बन कर तभी चले गए थे, लेकिन उस के बाद ये तीनों ही फाइल लटक गयीं, उक्त सभी न्यायसंगत माँगों पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई जबकि मंत्री जी तथा सचिव ना केवल सहमत थे बल्कि उन के द्वारा लगातार वार्ताओं में सहमति दी गई और प्रयास भी किये गए, इस सब के बावजूद इन मांगों पर सकारात्मक कार्यवाही न होना कहीं ना कहीं सरकार तथा शासन की लचर कार्यप्रणाली तथा कार्मिकों की मनमानी को दर्शाता है।
उन्होने कहा कि इस बार हम अपने अधिकारों के लिए अंत तक लड़ेंगे और हर वो प्रयास करेंगे जो चिकित्सकों के हित में होगा। माननीय उच्च न्यायालय से भी हस्तक्षेप की प्रार्थना करते हुए अपने लिए न्याय और हमारे अधिकारों की रक्षा की गुहार लगायेंगे।