
लीना बनौधा
हरिद्वार। दशहरा त्योहार ही नहीं अपितु उल्लास है। इसका दूसरा नाम विजयदशमी है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के, प्रतीक रूप में मनाया जाता है। इस दिन श्री राम ने असुर सम्राट् दशानन रावण का संहार किया था। इसी दिन भगवती दुर्गा ने आततायी महिषासुर का वध किया था। यह त्योहार हमें विश्वास दिलाता है कि आसुरी शक्तियों (बुराइयों) पर दैवीय शक्तियों (अच्छाइयों) की सदैव विजय होती है। प्रत्येक वर्ष दशहरा मनाया जाता है जिसमें अपार जन-समूह के समक्ष दीर्घकाय रावण का पुतला फूंका जाता है। दशहरा हमें याद दिलाता है तथा शिक्षा देता है कि हम अपने मन से क्रोध, अहंकार व बुराई को समाप्त कर दें, उन्हें फूंक दें और अच्छाई को अपनाएं। परन्तु लगता है कि बुराई के प्रतीक रावण के पुतले को प्रतिवर्ष फूंकना एक औपचारिकता मात्र है। आज बुराई कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है।
प्रसिद्ध शायर डा० श्याम बनौधा तालिब ने ठीक ही कहा है –
“सोच-सोच कर बात यही, तालिब अब तक शर्मिंदा हैं,
फूंक दिए रावण के पुतले, मन का रावण ज़िंदा है।”
समाज को सुधारने व सही दिशा देने का कर्तव्य धर्म-गुरुओं का बनता है परन्तु अनेक धर्मगुरु समाज को गुमराह करके धन कमाने में व्यस्त हैं। वे अल्प-ज्ञानी, मनमाना आचरण व आडम्बर करके, समाज को धर्मान्ध बना रहे हैं तथा अन्ध विश्वास बढ़ा रहे हैं।
परमात्मा की असीम कृपा से आज, विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी जगत्गुरु संत रामपाल जी भटके समाज को सही दिशा दिखा रहे हैं। अपने सत्यज्ञान प्रकाश से नशाखोरी, दहेज, आडंबर, अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों का समूल नाश कर रहे हैंं। संत रामपालजी के लाखों-करोड़ों अनुयायी हैं जो नशा बिल्कुल नहीं करते तथा विवाह बिना दहेज के करते हैं। प्राकृतिक आपदा में प्रभावित लोगों की सहायता करते हैं। आज भी बिहार में बाढ़-पीड़ित क्षेत्रों में निःशुल्क भण्डारा-सेवा कर रहे हैं।