
श्री महाकालेश्वर महादेव शिवालय में लगा श्रद्धालुओं का जलाभिषेक के लिए तांता
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। सावन शिवरात्रि पर्व पर जगजीपुर कनखल में श्री महाकालेश्वर महादेव शिवालय में तड़के से ही श्रद्धालुओं का जलाभिषेक व पूजा अर्चना करने के लिए तांता लगा रहा। श्रावण मास में महारुद्राभिषेक करने वाले राकेश वर्मा, मोहित वर्मा ने सपरिवार महारुद्राभिषेक किया। इस अवसर पर श्री गणेश गायत्री परिवार ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी जितेन्द्र रघुवंशी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि शिव श्रृंगार में ही रचा बसा है, भगवान शिव का वास्तविक स्वरूप। यदि इस रहस्य को हम जान गए, तो शिव आराधना मनोवांछित फल प्रदान करती है।
भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं। शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं, चंद्रमा मन का प्रतीक है, शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है। शिव जी की तीन आंखें हैं, इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु, पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।
उन्होंने कहा कि सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है। शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है त्रिशूल, भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है। शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है, शिव जी के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है। शिव जी ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है। शिव जी के शरीर पर भस्म लगी होती है।
कहा कि शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है, भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है। रघुवंशी ने बताया कि शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है, वृषभ धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं। इस तरह शिव जी का स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, महिमा अपरंपार है, उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है। इस व्यापक स्वरूप का चिन्तन करते हुए जलाभिषेक या महारुद्राभिषेक करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।