लीना बनौधा
देहरादून। जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन कुछ लोग चट्टान की तरह कठिनाइयों का सामना करते हुए भी हार नहीं मानते। उत्तराखंड की गरिमा जोशी भी उनमें से एक है। एक प्रतिभाशाली पैरा एथलीट, जिन्होंने कई प्रतियोगिताओं में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते हैं, लेकिन एक हादसे ने उनकी जिंदगी को बदल दिया।
गरिमा, जो अल्मोड़ा जिले के द्वारहाट की रहने वाली हैं, ने बताया कि उन्होंने 2013 में अपने करियर की शुरुआत की थी और हमेशा से एक सफल धावक बनने का सपना देखा था। लेकिन 2018 में एक गंभीर सड़क हादसे ने उनके सपने को चूर-चूर कर दिया। उनकी जिंदगी थम सी गई। प्रैक्टिस के दौरान एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे उन्हें स्पाइनल कॉर्ड इंजरी हो गई।
जहां वे दौड़ते हुए पूरी दुनिया को जीतना चाहती थी, वहीं डॉक्टरों ने बताया कि वह अब कभी पैरों पर खड़ी भी नहीं हो पाएंगी। यह सुन उनके पैरों तले जमीन निकल गई।
इस मुश्किल समय में, गरिमा की मां भी कैंसर की अंतिम स्टेज पर थीं। दोनों मां-बेटी अस्पताल में भर्ती थीं। गरिमा दुखों के पहाड़ तले दबती जा रही थी। ऐसे में उनकी मां ने उन्हें हौसला दिया और परिस्थितियों से हार न मानने का मंत्र दिया। उनकी मां ने उन्हें समझाया कि ओलंपिक में खेलने का सपना भले ही अधूरा रह गया हो, लेकिन वह पैरालंपिक के लिए खेल सकती हैं।
मां के दिए हौसले व प्रेरणा से गरिमा ने अपने सपनों को फिर से संजोने का फैसला किया। प्रेरणा से भरी गरिमा ने हिम्मत जुटाई और कई स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। आज वह न केवल एक सफल पैरा एथलीट हैं, बल्कि मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में भी जानी जाती हैं। उनकी कहानी हर किसी के लिए एक प्रेरणा है, जो यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद कभी हार नहीं माननी चाहिए। गरिमा जोशी आज उत्तराखंड का नाम रोशन कर रही हैं और उनके जज़्बे से हम सभी को प्रेरणा मिलती है।