
*डॉ. नरेश का दावाः वर्ष 2013 की आपदा में अपनी जान गंवाने वालों की अंतिम बात मुझ से हुई
*अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में देश-विदेश से आए प्रतिभागी एवं दर्शक हुए भावुक
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव गंगा के तट पर आयोजित हो रहा है। जिसके अंतर्गत रोजाना देश-विदेश से आए विषय विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिए जा रहे हैं। इसी क्रम में ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय रचना शरीर विभागाध्यक्ष एवं इंडियन रेडक्रॉस उत्तराखंड के चेयरमैन प्रोफेसर (डॉ.) नरेश चौधरी ने आपदा प्रबंधन में आयुर्वेद एवं योग की महत्वता जैसे ज्वलंत विषय पर मुख्य रूप से व्याख्यान दिया।

डॉ. नरेश चौधरी ने 2013 में आई भयानक केदारनाथ आपदा में स्वयं द्वारा किए गए जमीनी कार्यों की प्रमाणित आधार विस्तृत जानकारियां देते हुए कहा कि उस समय हमारे प्रदेश में आपदा से चुनौती के लिए बहुत कम संसाधन थे। जिसमें हम आपदा से ज्यादा प्रभावित हुए जनहानि, पशु हानि, एवं आर्थिक हानि को कम नहीं किया जा सका। वर्ष 2013 केदारनाथ आपदा में अपनी जान गंवाने वालों से अधिकतर अंतिम बात मेरे से, मेरे मोबाइल पर हुई, क्योंकि मेरे मोबाइल नंबर ही हेल्पलाइन में प्रसारित किया गया था।
उन्होंने बताया कि आपदा प्रभावित व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों द्वारा मेरे मोबाइल नंबर प्रभावित व्यक्तियों को दे दिए गए, जिससे हरेक व्यक्ति, जब तक मोबाइल उनके कार्य कर रहे थे, उन सभी ने मेरे से वार्ता की और उन सभी को मेरे द्वारा यथासंभव सहायता देने का आश्वासन देकर उनको गाइड भी किया गया। परंतु ऑक्सीजन की कमी, पानी की कमी एवं ठंड से लोग मरते रहे जोकि सबसे भयावह समय था। इसके बाद उनके परिवार के सदस्यों को भी समझाना बड़ी टेढ़ी खीर था।
डॉ. चौधरी ने बताया कि उनको यह भी नहीं कह सकते थे कि वह इस दुनिया में अब नहीं है। इसके बाद मेरे द्वारा अपने रेडक्रॉस स्वयंसेवकों के सहयोग से काउंसिलिंग की गई। यहां तक की जो 39 मृत शरीर गंगा में बहकर हरिद्वार आए, उन सभी को ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के शरीर रचना विभाग के शव विच्छेदन कक्ष में रखा गया। जब उनको कोई भी परिवार का सदस्य नहीं पहचान पाया, तो उनका दाह संस्कार एवं पिंडदान भी मेरे द्वारा किया गया।
डॉ. नरेश चौधरी द्वारा किए गए समर्पित कार्यों का विवरण सुनकर सभी दर्शक एवं प्रतिभागी भावुक होकर भाव विभोर हो गए। आज हम उक्त घटना में जागरूक होकर सभी आधुनिक संसाधनों से वशीभूत हैं। वर्ष 2013 के बाद आने वाली आपदाओं में उत्तराखंड प्रदेश में अग्रणी रहकर जनहानि, पशु हानि एवं आर्थिक हानि पर नियंत्रण कर आपदा को भी यूनिकरण किया। आपदा प्रभावित व्यक्तियों का मानसिक तनाव कम करने के लिए आयुर्वेद एवं योग का विशेष महत्व है।
उन्होंने बताया कि आपदा प्रभावित परिवारों को फिर से नई जिंदगी की शुरुआत करने में विशेष रूप से प्रेरणा मिलती है, यदि जीवन है, तो फिर से सभी तरह से पुनर्वास हो जाएगा। आपदा से पूर्व आपदा आने पर एवं आपदा समाप्त होने पर जन समाज को क्या-क्या करना है, इन सब पर जन जागरण अभियान समय-समय पर चलाते रहना चाहिए।