
विद्वानों ने माना- सार्थक कदम
लीना बनौधा/ भावना गुप्ता
हरिद्वार। देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज और यूसर्क से जुड़े विद्वानों का निर्मल गंगा अभियान के मद्देनजर एक ई-संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें विद्वानों ने माना कि गंगा के जल को निर्मल बनाने के लिए सार्थक कदम के साथ सभी को पूर्ण सहयोग करने होंगे, तभी गंगा निर्मल हो सकती है। अब तक जो कार्य हुए हैं, उसमें कई और सुधार की आवश्यकता है। आनलाइन हुई इस संगोष्ठी की शुरुआत करते हुए देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डाॅ. चिन्मय पण्डया ने कहा कि पतित पावनी गंगा भारत की जीवन रेखा समान है। गंगा का जल अमृत तुल्य है। इसे स्वच्छ एवं निर्मल बनाने के लिए हम सभी को कंध्े से कंध मिलाकर चलना चाहिए। उन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा चलाये जा रहे निर्मल गंगा जन अभियान की विस्तृत जानकारी दी। कहा कि इस अभियान में गायत्राी परिवार के कई लाख स्वयंसेवक जुटे हैं। उन्होंने कहा कि अब तक हुए कार्यों को ध्यान में रखते हुए आगे की रणनीति तैयार की जानी चाहिए। इस अवसर पर डाॅ. पण्डया ने गंगा के वैज्ञानिक महत्त्व एवं आध्यात्मिक पक्ष पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए पतित पावनी गंगा को निर्मल बनाने के लिए और अध्कि ध्यान देने पर बल दिया। देसंविवि के कुलसचिव बलदाऊ देवांगन ने वर्तमान समय में पतित पावनी गंगा की महती आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त किए। प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा विभाग, आईएएस आनंद वर्धन ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए सभी को एकजुट होकर कार्य करने पर बल दिया। उन्होंने गंगा का स्वरूप, उसकी धारा, उसका भूगोल व उसकी धार्मिक भावना को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझाया। इससे पूर्व टी.सी.एम. तकनीकी, संवाद व प्रबंधन, संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. अभय सक्सेना ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत किया। इस अवसर पर यूसर्क से सुरेश नौटियाल, नैनीताल से डा. आशुतोष भट्ट, डाॅ. शिवनारायण प्रसाद, राधेश्याम सोनी, डाॅ. अरूणेश पाराशर, डाॅ. उमाकांत इंदौलिया आदि ने भी अपने-अपने विचार रखे।