
■दुर्गंध भरे वातावरण में भी चिकित्सक निराश्रितों की सेवा भाव से उपचार में जुटे
■निराश्रितों के लिए स्टॉफ चंदा एकत्रित कर उनकी सुख सुविधाओं रखता हैं ख्याल
■गर्मी व सर्दी में भी निराश्रित मरीजों का ख्याल रखना किसी चुनौती से कम नहीं
■निराश्रित वार्ड में मौजूदा वक्त में 09 पुरूष और 08 महिला मरीज हैं भर्ती
■समाजिक संगठन व संस्थाओं को भी निराश्रितों के लिए आगे आना चाहिए
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। जिला अस्पताल हरिद्वार में निराश्रित वार्ड में भर्ती मरीजों के उपचार और उनकी देखभाल करना वास्तव में सच्ची मानव सेवा साबित होे रही है। निराश्रित वार्ड में भर्ती वो मरीज होते हैं, जिनमें अधिकांश अपनी सुद्बुद् खो चुके हुए होते हैं, तो कुछ बुजुर्ग होने के साथ गम्भीर रूप से घायल होते है। जिनकी देखभाल करने वाला उनके परिवार को कोई नहीं होता।

ऐसे निराश्रित मरीजों का परिवार अस्पताल में अगर कोई हैं तो वह कार्यरत चिकित्सक, नर्स और वार्ड बॉय है। ऐेसे मरीजों के वार्ड की साफ सफाई करना भी अस्पताल प्रबंधन के लिए एक चुनौती है। निराश्रित वार्ड में भर्ती मरीज मल-मूत्र वहीं पर त्याग देते हैं और जिसकारण भारी दुर्गंध भरे वार्ड में मरीजांे की देखभाल व उपचार करना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन उसके बावजूद जिला अस्पताल का प्रबंधन ऐसे मरीजों के लिए देवदूत बना हुआ है।

जिनका उपचार व देखभाल करना उनकी रोज की दिनचर्या में शुमार है। निराश्रित वार्ड की सफाई करने वाले कर्मी को चिकित्सक समेत स्टॉफ के लोग वेतन से अलग चंदा एकत्रित कर उनको रोजना सौ रूपये देते है, ताकि वार्ड में सफाई बरकरार रहे। शहर के कुछ प्रबुद्ध नागरिक ऐसे मरीजों की व्यवस्था में अपना योगदान हर माह दे रहे है। शहर में कई समाजिक संगठन व संस्थाए हैं जो धर्मार्थ की सेवा में काम कर रही हैं, उनको अस्पताल के निरा़िश्रत वार्ड में भर्ती मरीजों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। जिससे उनके द्वारा चलाये जा रहे सेवा कार्य फलीभूत हो सकें।

जिला अस्पताल हरिद्वार प्रमुख अधीक्षक डॉ. सीपी त्रिपाठी ने बताया कि अस्तपाल में निराश्रितों के लिए तीन वार्ड है। जिनमें ऐसे मरीजों को रखा जाता है। जिनके परिवार का कुछ अता-पता नहीं होता और वह अपनी सुद्बुद् खोये हुए होते हैं, तो कुछ बुजुर्ग होने के कारण उनकी मानसिक स्थिति समान्य नहीं होती और वह गम्भीर रूप से घायल होते है। उनको निराश्रित वार्ड में भर्ती कर उपचार किया जाता है। अस्पताल प्रबंधन की ओर से निराश्रितों मरीजों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है।

उन्होंने बताया कि निराश्रित मरीजों को समय से दवा देना, खाना खिलाना, उनके हर सुख दुख का ख्याल रखना और उनके शरीर की साफ सफाई करना होता है। गर्मी व सर्दी में भी निराश्रित मरीजों का भी ख्याल रखा जाता है। गर्मी में मरीजों उनके लिए पंखे व कुलर और सर्दी में हिटर, स्वेटर, कम्बल आदि की व्यवस्था की जाती है। अगर वास्तव में सच्ची मानव सेवा देखना हैं, तो जिला अस्पताल के निराश्रित वार्ड में आकर देखे, आप खुद पे खुद उनकी सेवाभाव में लगे चिकित्सक, नर्स, वार्ड बॉय और सफाई कर्मियों कार्यो की प्रशंासा करते नही थकेगें।
जिला अस्पताल के चिकित्साधिकारी डॉ. विकास दीप ने बताया कि अस्पताल के निराश्रित वार्ड में मौजूदा वक्त में 09 पुरूष और 08 महिला मरीज भर्ती है। जिनको उपचार निरंतर चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है। चिकित्सकों को समान्य मरीजों से ज्यादा चिंता निराश्रित मरीजों की होती है। समान्य मरीज तो बोल कर अपनी दुख तकलीफ बता सकता है। लेकिन जोकि मरीज अपनी सुद्बुद् खो चुका हैं वह अपनी दुख तकलीफ कैसे बया करें। इसलिए निराश्रित मरीजों के उपचार में लगे चिकित्सकों को उनके हावभाव देखकर ही उनके हर दुख तकलीफों को समझना पड़ता है। अस्पताल में कार्यरत चिकित्सक, नर्स, वार्ड बॉय और सफाई कर्मी नौकरी करने के साथ-साथ निराश्रित मरीजों की सेवा कर पुण्य कमा रहे है। अस्पताल का स्टॉफ तन-मन और धन से निराश्रितों की सेवा करने में जुटा है।