
एक भाई पत्रकार, दूसरा शहर के प्रसिद्ध वैद्य का कर्मी
बाप-बेटे फूटपाथ पर रहने व भीख मांगने को थे मजबूर
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। भरापूरा परिवार होने के बावजूद भी जवान बेटे की आर्थी को कंधा देने के लिए बूढे बाप को दूसरे का मुंह ताकने के लिए मजबूर होते देखा गया। इतना ही नहीं खुद की इतनी लाचारी की वह भी बेटे की आर्थी को कंधा नहीं दे पाया। क्योंकि खुद फालिस का शिकार, जोकि अपना खुद अपना संतुलन नहीं सम्भाल पा रहा, ऐसे में वह अपने जवान बेटे की आर्थी को कैसे कंधा देता। इसी अपनी लाचारी पर अभागा पिता खुद अकेला जिला अस्पताल में बैठा आंसू बहाता रहा। जबकि बडा भाई हरिद्वार का पत्रकार और दूसरा भाई शहर के प्रसिद्ध नामी वैद्य का कर्मी, उसके बावजूद भी वह अकेला बेसहाराओं की तरह सिसकता रहा। उसके दुख दर्द में कोई शामिल होने तथा उसको तस्सली के लिए साथ नहीं नजर आया। जिसका एक बेटा था जिसको नशे लत ने अपनी गिरफ्रत में ले लिया और उसकी फूटपाथ पर ही बीती रात मौत हो गयी। ज्वालापुर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए तो जिला अस्पताल भेज दिया। लेकिन दाह संस्कार के लिए अपने न पहुंचने पर अभागे पिता को बेटे के दाह संस्कार के लिए अस्पताल की मदद से सेवा समिति की एम्बुलेस से ले जाया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार ज्वालापुर पुलिस ने पीठ बाजार ज्वालापुर फूटपाथ से एक युवक भूपेन्द्र पुत्र नरेन्द्र उम्र करीब 22 वर्ष निवासी पीठ बाजार ज्वालापुर की बीती रात फूटपाथ पर ही मौत हो गयी। जिसकी जानकारी लगते ही पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। मृतक का पिता नरेन्द्र उम्र करीब 56 वर्ष जोकि कमजोर और फालिस का शिकार जिला अस्पताल के एक कोने में बैठे कर सिसकता रहे, मृतक के पिता के अलावा ओर कोई नहीं था। जब मृतक के पिता नरेन्द्र से ऐसी दुख की घडी में उनके साथ कोई ओर न होने का कारण पूछा तो उनके सीने में दबा दर्द का गुब्बार आंखू के साथ फूट पड़ा। पिता ने रोते हुए बताया कि उनको भरापूरा परिवार है, उसके पांच भाई थे। जिनमें दो भाईयों की मौत हो चुकी है। लेकिन अभी भी उनके अलावा दो भाई भी है। जिनमें एक शहर के प्रसिद्ध नामी गिरामी वैद्य का कर्मी है और दूसरा पत्रकार है। जिसका खुद का सप्ताहिक अखबार निकलता है और दोनों ही ज्वालापुर में रहते है। लेकिन उसके इस दुख की घड़ी में उनके साथ कोई नहीं है। अभागे पिता ने बताया कि कभी उसकी पीठ बाजार ज्वालापुर में परचून की दुकान थी और घर था। उसके परिवार में उसकी पत्नी जमना, दो बेटियां, एक बेटा था। जिनमें उन्होंने अपनी एक बेटी बरखा की शादी पंजाब में कर दी, लेकिन एक बेटी की मौत हो गयी। उनका बेटा उनके साथ दुकान में ही हाथ बंटाता था। लेकिन इसी दौरान वर्ष 2005-06 उनको फालिस मार गया और दुकान बंद होने के कागार पर आ गयी। बीमारी व घर खर्च के लिए लाले पड़ गये। तब उसके भाई जोकि दुकान के उपर वाले प्रोशन में रहता था। उस भाई ने मदद करने के नाम पर उससे दुकान व मकान 60 हजार में खरीद लिए और पैसा केवल आधा दिया। लेकिन लिखत पढत पूरी कर ली, उन्होंने बडे भाई पर भरोसा किया। लेकिन आज तक बाकी का पैसा तक नहीं दिया। वह अपने बेटे और पत्नी के साथ जमालपुर कनखल में किराये पर कमरा लेकर रहने लगे। घर व उसकी दवा का खर्च उसकी पत्नी जमना सिड़कुल में नौकरी करते हुए चलाने लगी। उसके बेटे भूपेन्द्र नशे की गिरफ्रत में आ गया। जिससे कारण उसकी पत्नी जमना भी मानसिक रूप से परेशान रहने लगी और सात माह पूर्व भी उसकी मौत हो गयी। घर व दवा का खर्च उसकी पत्नी ही चलाती थी उसकी मौत के बाद वह अपने बेटे के साथ फूटपाथ पर आ गये और उसी को अपना बसेरा बना लिया। उन्होंने अपने बेटे को काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि वह नशे के बिना नहीं रह सकता था। उनको अपना व बेटे का पेट पालने के लिए भीख मांगनी पड़ी और अब वह अपना व बेटे का पेट भीख मांग कर ही चलाते थे। अब उनका बेटा भी उनको छोड कर चला गया। मैं इतना अभागा बाप हूॅं कि आज अपने जवान बेटे के आर्थी को कंधा भी नहीं दे सकता। मुझे चिंता हो रही हैं कि उसको दाह संस्कार आखिर कैसे होगा। मेरे दो सगे भाई होने के बाद भी वह आज में दुनिया में अकेला हॅू। मेरे इस दुख में कोई शामिल नहीं है। उनकी मौत भी एक दिन फूूटपाथ पर हो जाएगी और उनको लावारिस में फूंक दिया जाएगा। बताया जा रहा हैं लाचार बूढे पिता की स्थिति को देखते हुए जिला अस्पताल की ओर से सेवा समिति की एम्बुलेस के सहारे शव को दाह संस्कार के लिए भेजा गया। इस घटना ने साबित कर दिया हैं कि आज हमारा कितना पतन हो चुका हैं कि अपने स्वार्थ व आर्थिक लाभ के लिए मानवता व रिश्तों का भी कत्ल कर दिया है।