इस बार अद्भुत योग है शनिश्चरी अमावश्या को…
लीना बनौधा
हरिद्वार। ज्योतिषाचार्य पं. विजय कुमार जोशी ने बताया कि शनि को सूर्य पुत्र कहा है और सूर्य वर्षा का कारण होने से जलकारक शक्ति है, सूर्य की गर्मी से पृथ्वी के जल तत्व का सम्बन्ध आकाश के जल से बन पाता है। प्रकृति के अनुसार सभी मौसम में धरती से भाप के रूप में उठकर आकाश में जाने वाला जल पुनः वर्षा के रूप में धरती पर आता है, इसलिए सूर्य वर्षा का कारण और सूर्य पुत्र शनि स्वयं जलीय गुणों से भरा है। जल के मुख्यतः चार प्रभाव में जो सबसे मूल है, उसका सम्बन्ध सौर मंडल की सातवीं कक्षा में घूमने वाले शनि से ही है, जल आपदा, बाढ़, उग्ररूप में तेज बहाव वाला, भयकारक, सर्वभक्षी प्रलयकारी प्रभाव वाला रुद्र रूप भी शनि है।
उन्होंने बताया कि शनि ग्रह को काल पुरुष का दुख माना गया है, शनि कर्म और उसके परिणाम का प्रतीक है। सूर्य प्रकाश तो शनि अंधकार, सूर्य जीवन तो शनि मृत्यु है हमारे स्नायविक मंडल में शनि का पूर्ण प्रभाव रहता है। हमारे अच्छे बुरे कर्मो का लेखा जोखा देखकर ही शनि देव हमे सांसारिक सुखों की प्राप्ती, भौतिक सुख, राज, वैभव, समस्त आनन्द, रति सुख हमारे कर्मो के आधार पर ही हमे प्रदान करते है। ईश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा, दान व अनन्य भाव से की गयी, भक्ति से मनुष्य आध्यात्मिकता शक्ति के द्वारा एक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त प्राप्त करता है, सदगति और मोक्ष का अधिकार खुद पर खुद शनि से जुड़ जाता है। जीवन के अंतिम समय की गति और पुर्नजन्म की स्थिति इन्ही आधार पर होती है। इसलिए कह सकते है शनि में रुद्र, शिव, सूर्य, यम आदि का समावेश दिखाई देता है।
पद्म पुराण के अनुसार भी यमराज के दो रूप है जब पुण्यात्मा की पेशी होती है तब उनका रूप गरुड़ पर सवार, चतुर्भुज, मुस्कान भरे चेहरे वाला शंख, चक्र, गदा धारी विष्णु जी वाला होता है, इसके विपरीत जब दुष्टात्माओं की पेशी में भैसे में सवार, आग की लपट वाली ध्वनि, डरावना चेहरा, हाथ मे दंड लिये हुये होते है। इसलिए शनि को काल, यम, यमानुज, छायासुत, प्रेतपुरीनाथ, अंतक आदि नाम से भी जाना जाता है जो यमराज के ही पर्यायवाची है। उन्होंने बताया कि आज यानि 04 दिसंबर को शनिश्चरी अमावस्या है, इसी दिन सदी का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण भी है। सूर्य ग्रहण के साथ शनि अमावश्या का अद्भुत संयोग परम योग— प्रद है शनि का अनुराधा नक्षत्र में और आकाशीय मंडल में ग्रहण का प्रभाव अमावस्या को तंत्रोक्त बनाता है, ये दुर्लभ संजोग है भारत में सूर्य ग्रहण दृश्यमान नही है। इसलिए यहा सूतक मान्य नहीं होगा सनातन संस्कृति मे अमावस्या का विशेष महत्व है, अगर अमावस्या शनिवार को पड़े तो विशेष चमत्कारी व कल्याणकारी होती है। कर्म प्रधान व्यक्ती को तो बिना कुछ किये स्वतः फल मिल जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चन्द्र खगोलीय रूप से एक साथ होते है सूर्य आत्मकारक और चन्द्र मन का और पोषण का कारक पंच महाभूत – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु का प्रभाव पृथ्वी पर खास होता है और पित्र लोक भी चन्द्रमा के ठीक ऊपर अनदेखा लोक है, जो अमावस्या को अत्यंत कांतिवान व लौकिक हो जाता है, इसलिए अमावस्या को पित्र के लिए किए गए दान व विशेष रूप से तर्पण का महत्व है। इस दिन पित्र तर्पण हमारे कुल में किसी के जाने अनजाने में किये गए कर्म जो पारिवारिक श्राप के रूप में जीवन मे दुख का कारण बनते है, उन कर्मो से हमे मुक्ति दिला सकते हैं।
उन्होंने कहा कि कलयुग है इस भौतिक युग में उदर पूर्ति के लिए जाने अनजाने में पाप कर्म हो ही जाते है, लेकिन धर्म, दान, सत्कर्म करते चलिए ये कभी निष्फल नही जाते और इनका फल प्रकृति प्रदत्त ही होता है कहा गया है।
‘ जैसी मति वैसी गति ‘
जैसी गति वैसा जन्म’
ज्योतिषाचार्य पं0 विजय कुमार जोशी
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