
श्रद्धा का आरोहण का महापर्व है गुरुपूर्णिमा: शैलदीदी
लीना बनौधा
हरिद्वार। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में गुरु पूर्णिमा पर्व समूह साधना और सद्गुरु द्वारा बताये सूत्रों को पालन करने की शपथ के साथ मनाया गया। शांतिकुंज परिवार ने कोविड-19 के अनुशासनों के अंतर्गत पर्व पूजन का कार्यक्रम भावनात्मक रूप से सम्पन्न किया। महापर्व पर गायत्राी परिवार प्रमुखद्वय ने आनलाइन संदेश दिये। इसमें शांतिकुंज व देवसंस्कृति विवि परिवार ने सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए एलईडी स्क्रीन के माध्यम से लाइव प्रसारण में भागीदारी की, तो वहीं देश-विदेश के गायत्राी परिवार के कार्यकर्ता भी सोशल मीडिया के माध्यम से आनलाइन लाइव जुड़े। आनलाइन गुरु पूर्मिणा पूजन को शांतिकुंज के अधिकारिक यूटयूब चैनल, फेसबुक, जूम सहित अनेक सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से प्रसारित किया गया। इस दौरान भारत सहित सौ से अधिक देशों के लाखों गायत्री साधकों ने भाग लिया।
इस अवसर पर अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डाॅ. प्रणव पण्डया ने कहा कि गुुरु पूर्णिमा स्मरण तथा समर्पण का महापर्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सच्चे मन से समर्पण करता है और गुरु के आदेशों को स्मरणपूर्वक पालन करता है। तब सद्गुरु अपने शिष्यों के सद्गुणों को खाद-पानी देते हुए विकसित करता है और दोषों के परिमार्जन के लिए विविध् उपाय सुझाता है। सद्गुरु अपने शिष्य को सदैव सीखते रहने, याद करते रहने, प्रतिभा परिष्कार, विशेषता विकसित करने तथा आत्मिक चेतना के विकास के लिए प्रेरित एवं मार्गदर्शन करता है। कहा कि सद्गुरु के शरण में आने पर शिष्य के बुद्धि सद्बुद्धि में परिवर्तित हो जाती है। डाॅ. पण्डया ने अपने सद्गुरु-युगऋषि पं श्रीराम शर्मा आचार्य के मार्गदर्शन में जीवन में हुए सकारात्मक बदलाव का उल्लेख करते हुए गुरु महिमा की विस्तृत जानकारी दी।
संस्था की अधिष्ठात्री शैलदीदी ने अपनी भावपूर्ण उद्बोधन में कहा कि पावन गुुरुपूर्णिमा श्रद्धा का आरोहण का महापर्व है। सद्गुरु तपः उर्जा से सम्पन्न एवं चरित्रावान होते हैं। गुरु अपने आचरण, चरित्र तपशक्ति के समर्पित शिष्यों के आत्मिक व आध्यात्मिक विकास करने के लिए प्रेरित करते हैं। शैल दीदी ने कहा कि हमारे आराध्य एवं सद्गुरु परम पूज्य गुरुदेव युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्यश्री ने अपने लाखों-करोडों शिष्यों के जीवन को न केवल बदला है वरन उसे जीवन में उंचा से उंचे उठाया है। सच्चे मन से उनकी तपःशक्ति से जो भी जुड़ा, उन्हें हमेशा लाभ ही लाभ मिला है। शैलदीदी ने अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए गुरु-शिष्य परंपरा पर विस्तृत जानकारी दी।