मुकेश वर्मा
हरिद्वार। लोक आस्था के महापर्व छठ का मंगलवार को समापन हो गया। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ साथ पिछले तीन दिनों से मनाया जा रहा ये पर्व सम्पन्न हुआ। ऊषा अर्घ्य प्रदान करने के साथ ही छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास भी खत्म हो गया।
गौरतलब है कि छठ महापर्व के चौथे दिन तड़के ही घाटों पर छठ व्रतियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया। ऊषा अर्घ्य प्रदान करने के लिए व्रती महिलाएं जल में खड़े होकर सूर्य नारायण के उगने का इंतजार किया और जैसे ही सूर्य नारायण प्रकट हुए सभी व्रतियों ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपने परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और जीवन में ऊर्जा की कामना की। इसी के साथ छठ पर्व का समापन सौ गया। चार दिवसीय यह पर्व 25 अक्टूबर को ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हुआ था। जोकि आज संपन्न हो गया।
सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद व्रती घर लौटकर श्रद्धापूर्वक व्रत का पारण किया। 36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद यह क्षण भक्ति और संतोष से भरा होता है। परंपरा के अनुसार, व्रत का पारण कच्चे दूध का शरबत, ठेकुआ, या गुड़-चावल की खीर खाकर किया जाता है। कुछ महिलाएं पूजा स्थल पर दीप जलाकर छठी मईया का आभार प्रकट करती हैं और फिर परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करती हैं। पारण के दौरान ठेकुआ, कसरी, खीर, फलाहार और तुलसी जल का विशेष महत्व होता है। सबसे पहले व्रती तुलसी के पत्ते से जल ग्रहण करते हैं और फिर छठी मईया को प्रणाम कर प्रसाद खाकर व्रत तोड़ते हैं।
