
जिला अस्पताल ने भी नहीं दिखाई गम्भीरता, मौत के बाद जागा स्वास्थ्य विभाग
करीब दस परिवार के घरों के बाहर लगाया स्वास्थ्य विभाग ने कोराटाइन का स्टिंगर
स्वास्थ्य विभाग टीम ने आज मृतका के माता-पिता के लिए सैम्पल
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। कोरोना वायरस महामारी को लेकर केन्द्र व राज्य सरकार के निर्देशों को लेकर हरिद्वार में किस तरह सरकारी व निजी अस्पताल गम्भीर है। इस का पता गत दिनों हुई मानवता को शर्मसार करने वाली घटना से चलता हैं कि एक पिता अपनी बीमार बेटी के इलाज के लिए निजी हॉस्पिटलों सहित जिला व मेला अस्पताल में ठोकरे खाता रहा। लेकिन किसी ने भी कोई गम्भीरता नहीं दिखाई। चिकित्सकों के उपेक्षाओं से निराश व हताश पिता अपने बेटी को तील-तील मरता देखता रहा और आखिर घर में ही रविवार की रात को उसकी बेटी ने दम तोड़ दिया। लेकिन मृतका के दाह संस्कार के बाद मामले की भनक लगते ही स्वास्थ्य विभाग के कान खड़े हो गये। स्वास्थ्य विभाग टीम ने मौके पर पहुंचकर परिवार सहित दाह संस्कार में गये लोगों के घरों के बाहर होम अंडर कोराटाइन का स्टिंगर चस्पा कर दिया। स्वास्थ्य विभाग टीम ने मंगलवार की दोपहर को मृतका की माता-पिता के लिए सैम्पल लेकर जांच के लिए भेजे है। प्राप्त जानकारी के अनुसार शहर के मध्य स्थित एक पाॅश काॅलोनी में एक मानसिक अशक्त किशोरी उम्र करीब 17 वर्ष को 24 मार्च को बुखार व खांसी की शिकायत हो गयी। परिजनों द्वारा किशोरी का पडौस के ही एक नामी महिला चिकित्सक के यहां पर उपचार कराया जा रहा था, लेकिन रविवार को अधिक तबीयत बिगडने पर जब किशोरी को महिला चिकित्सक के पास ले जाया गया। जहां उसने भर्ती न कर किशोरी को जिला अस्पताल ले जाने की सलाह दे दी। परिजन किशोरी को रविवार की सुबह करीब 11 बजे उपचार के लिए जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां पर फ्रलू क्लीनिक में मौजूद चिकित्सकों ने किशोरी को देखकर कुछ टेस्ट लिख दिये और बोला सोमवार को होगे। बताया जा रहा हैं कि जब पिता ने भर्ती करने को कहा गया तो चिकित्सक ने भर्ती करने की कोई आवश्कता नहीं है। और ना ही इस में कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण है। जब पिता ने चिकित्सकों से अनुरोध् किया कि आप पर्चे पर लिख दे कि कोरोना वायरस के लक्षण नहीं है। जिसके आधर पर उसकी बेटी को निजी अस्पताल वाले भर्ती कर लेगें। लेकिन चिकित्सकों ने कोई जबाव दिये बिना ही घर भेज दिया। बेटी की हालत गम्भीर देखते हुए पिता कनखल के एक नामी निजी अस्पताल लेकर पहुंचे। वहां पर भी बीमार किशोरी को भर्ती नहीं किया और मेला अस्पताल टेस्ट के लिए कहते हुए भेज दिया। पिता बेटी को राजकीय मेला अस्पताल लेकर पहुंचा, वहां पर भी किशोरी को टाल कर वापस भेज दिया। सरकारी अस्पताल व निजी अस्पताल से निराश होकर बीमार बेटी को लेकर वापस घर लौट गया। जब रात को उसकी तबीयत ओर बिगड़ी तो उसको रानीपुर मोड स्थित एक ओर नामी निजी हाॅस्पिटल ले जाया गया। वहां पर भी बीमार किशोरी का उपचार करने के लिए हाथ खड़े कर दिये गये और जौली ग्रांट ले जाने को कहा गया। जब सब ओर से हताश व निराश हो चुका पिता बेटी को जौली ग्रांट ले जाने के लिए रवाना हुआ तभी रास्ते में किशोरी की सासे उखड गयी। जिसको दोबारा कनखल निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां पर चिकित्सकों ने किशोरी को मृत घोषित कर दिया। सोमवार की सुबह जब किशोरी का दांह संस्कार कर दिया गया। जिसकी भनक लगते ही स्वास्थ्य विभाग के कान खड़े हुए और लाव लश्कर के साथ पीडित परिवार के घर पहुंची। जिसने जानकारी जुटाने के बाद पूरे घर को सैनेटाइज किया गया और दाह संस्कार में मौजूद लोगों की लिस्ट लेकर उनके घरों के बाहर 14 दिनों के लिए होम अंडर कोराटाइन का स्टिंगर चस्पा कर दिया। जबकि परिवार का कोई ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मंगलवार की दोपहर को पीडित परिवार के घर पहुंचकर माता-पिता के सैम्पल लिये। सीएमओ डाॅ. सरोज नैथानी से फोन पर सम्पर्क करने का प्रयास किया तो उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। जिला अस्पताल पीएमएस डाॅ. राजेश गुप्ता ने स्वीकार किया कि बीमार किशोरी को रविवार को उपचार के लिए जिला अस्पताल लाया गया था। जहां पर फ्रलू क्लीनिक में तैनात चिकित्सकों ने कुछ टैस्ट लिखे थे, जोकि सोमवार को होने थे। जिसके बाद किशोरी को घर भेज दिया गया था। लेकिन राजकीय मेला अस्पताल पहुंचने की जानकारी से अनभिज्ञता प्रकट की है। सवाल उठता हैं कि पीडित पिता जिन निजी अस्पतालों में बेटी का इलाज के लिए ले जाया गया, वहां के चिकित्सकों ने बीमार को भर्ती करने आखिर क्यों इंकार कर दिया?। क्या उन अस्पतालों की जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि अगर किशोरी में कोई अगर लक्षण नजर आये हैं तो उसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग को दी जाती?। जिला व मेला अस्पताल चिकित्सकों ने आखिर क्यों बीमार किशोरी के प्रति गम्भीरता नहीं दिखाई और इतनी घोर लापरवाही बरती?। मृतका की बीमारी को हलके में लेकर उसको घर भर्ती न कर घर भेज दिया गया। क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं होनी चाहिए?। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि कितनी गम्भीरता व ईमानदारी से केन्द्र व राज्य की सरकार के निर्देशों का पालन हरिद्वार की बीमार जनता के साथ किया जा रहा है।