
*अवैध खनन कारोबारियों के टुकड़ों पर जिंदगी जीने वालों की हराम हुई नींद
*फर्श से अर्श पर पहुंचे कुछ पत्रकार आज लग्जरी जिंदगी जी रहे, आखिर पैसा कहा से आ रहा?
*तथाकथित पत्रकारों की बाढ बनी शहरवासियों के लिए परेशानी का सबब
*शहर में नोट के खेल में कुछ लोग नौकरी छोड़ कर बन बैठे हैं पत्रकार
*पत्रकार बने कुछ लोग गले में बैग टाग कर घर से निकल पड़ते हैं शिकार पर
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। डीएम के अवैध खनन कारोबारियों के खिलाफ की जा रही ताबडतोड कार्यवाही से जहां अवैध खनन कारोबारियों में हड़कम्प की स्थिति है। वहीं अवैध खनन पर कार्यवाही होने से कुछ पत्रकारों में भी बैचेनी देखी जा रही है। हरिद्वार के कुछ पत्रकारों का घर के चूल्हे से लेकर ऐशो आराम की जिंदगी भी अवैध खनन कारोबारियों के टुकड़ों पर चलती है। अगर डीएम का ऐसे ही अवैध खनन कारोबारियों पर एक्शन किया जाता रहा तो अवैध खनन कारोबारियों के टुकड़ों पर जिंदगी जीने वाले पत्रकारों का आखिर क्या होगा? ये सवाल शहर के लोगों में आम चर्चा का विषय बना हुआ है। शहर के प्रबुध नागरिकों का कहना हैं कि प्रशासन को तथाकथित पत्रकारों पर भी नकेल कसनी चाहिए।
शहर का एक शातिर चर्चित पत्रकार ने तो अवैध खनन माफियाओं, अवैध शराब कारोबारियों और नियम विरूद्ध निर्माण करने वाले लोगों को अपनी पत्रकारिता का रौब दिखाते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही कराने का खौफ दिखाकर उनसे वसूली करने में माहिर माना जाता है। जिसने एक महिला को पत्रकार बनाकर उसकी आड़ में मोटा माल समेट रहा है। महिला पत्रकार के नाम से पोर्टल हो या फिर अखबार उसके नाम पर केवल अवैध खनन, पेड व बाग कटान, अवैध शराब और नियम विरूद्ध हो रहे निर्माण कार्यो के इर्द गिर्द सम्बंधित ही समाचार लगाये जाते है। जबकि महिला को खबरों की एबीसीडी तक नहीं आती, बस चर्चित पत्रकार ही खुद खबर बनाता हैं और उसके नाम पर चेप कर खुद सामने ना आकर महिला को आगे कर उसी से सेटिग करवाता है।
हैरान करने वाली बात हैं कि चर्चित पत्रकार के कारनामों की जानकारी होने के बावजूद उसके झांसे में विभागों के कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक उसके चुंगल में है। लेकिन कोई किसी झमले में पड़ना नहीं चाहता। इसलिए कर कोई चर्चित पत्रकार को झेल रहे है। वैसे तो ऐसी ही मानसिकता के और भी पत्रकार शहर में मौज कर रहे है। जोकि फर्श से लेकर अर्श तक पहुंचे है। जिनके पास ऐशो आराम की हर चीज मौजूद है। लेकिन यदि उनकी आमदनी की बात करें तो जो वह कमाते हैं उससे तो घर चलाना भी मुश्किल हैं, मगर वह लग्जरी जिंदगी जी रहे है। घर से निकलते ही ऐसे पत्रकारों की तलाश बाग, पेड़ कटान, नियम विरूद्ध हो रहे निर्माण की तलाश पर रहती है।
हरिद्वार में कुछ सालों में जिस तेजी से पत्रकारों के नाम पर तथाकथित पत्रकारों की बाढ आई है। उससे हर कोई हैरान और परेशान है। जो कम्पनियों में नौकरी करते थे उन्होंने भी नौकरी छोड़ कर वह भी अब पत्रकार बन बैठे है, गले में बैग टाग कर हाथ में फूंकनी लेकर निकल पड़ते हैं शिकार पर। ऐसे लोग पत्रकारिता की आड़ में लोगों में खौफ पैदाकर अपनी दुकानदारी चला रहे है। ऐसे लोगों की वजह से वास्तविक पत्रकारों की छवि धूमिल होने के साथ-साथ उनको शर्मसार होना पड़ रहा है। पत्रकारिता की आड़ में किये जा रहे नोट के खेल में शामिल तथाकथित पत्रकारों ने स्वच्छ पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
शहर के कुछ बुद्धिजीवी लोगों और वरिष्ठ पत्रकारों का कहना हैं कि ऐसी औछी पत्रकारिता करने वाले तथाकथित पत्रकारों पर नकेल कसना अब बेहद जरूरी हो गया है। वरना ऐसे तथाकथित पत्रकार साफ सुधरी पत्रकारिता से जुडे पत्रकारांे की छवि को यूं ही धूमिल करते हुए उनको शर्मसार करते रहेगें।