
लीना बनौधा
हरिद्वार। परम पूज्यनीय श्रीमाताजी निर्मलादेवी प्रणीत सहजयोेग कल अपना स्वर्ण जयन्ती समारोह मनाने जा रहा है। सहजयोग स्वर्ण जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में 1 मई से 5 मई तक ध्यान व संगीत के विभिन्न कार्यक्रम किये गये। जिसमें भारत सहित 70 देशों के सहजयोगियों ने आनलाइन भाग लिया। इसी क्रम में 03 मई को आनलाईन आत्मसाक्षात्कार का एक भव्य कार्यक्रम आयोजन किया गया। जिसमें घर बैठे ही हजारों साधकों द्वारा सहजयोग विधि से अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया गया। बताते चले कि सहजयोग का प्रारम्भ 05 मई 1970 को श्रीमाताजी निर्मला देवी द्वारा गुजरात राज्य के नारगोल नामक स्थान से किया गया। आज पूरे विश्व के लगभग 125 से अधिक देशों में सभी धर्म एवं जाति के लोगों द्वारा सहजयोग पद्वति से ध्यान का आनन्द लिया जा रहा है।‘सहज‘ अर्थात अन्तर-जात स्वाभाविकद, अपने आप होने वाला तथा ‘योग‘अर्थात परमात्मा से एकाकारिता। हर मनुष्य के अन्दर जन्म से ही एक सूक्ष्म तन्त्र होता है जोे जागृत होने पर परमात्मा से योग प्रदान करता है। सहजयोग के अनुसार मनुष्य के इस सूक्ष्म तन्त्र में ‘कुण्डलिनी‘ नामक शक्ति हमारे अन्दर स्थित है जो परमात्मा की शक्ति का प्रतिबिम्ब है। यह शक्ति हमारी रीड़ की हड्डी के निचले छोेर में त्रिकोणाकार अस्थि में विराज़मान है। इसके अतिरिक्त मानव सूक्ष्म शरीर में सात चक्र एवं तीन नाड़ियां होती हैं। जब मनुष्य सहजयोग विधि के अनुसार ध्यान करता है तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर इन चक्रो से गुजरते हुए सिर के ऊपर तालू क्षेत्र में स्थित सहस्त्रार चक्र का भेदन करती है। इससे मानव को अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है और उसको अपने हाथों की हथेलियों और सिर के तालू भाग पर शीतल चैतन्य लहरियों की अनुभूति होती है। सहजयोग सामूहिक ध्यान मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढाता है। इससे शरीर निरोगी बनता है। सहजयोग ध्यान एक विश्वव्यापी प्रमाणित ध्यान विधि है। आज जब सारा विश्व कोराना वायरस के संक्रमण से ग्रसित है ऐसे में इससे निमित आपदा के प्रभाव को कम करने एवं उसके उन्मूलन प्र्रभाव को कम करने एवं उसके उन्मूलन की दिशा में सहजयोग सामूहिक ध्यान शक्ति का प्रयोग एक कारगर उपचार साबित हो सकता है