
वीडियों व फोटो उतारने वाली मदद के सामने नहीं आ पा रहे
क्या संस्थाए व दानवीर बिना वीडियों व फोटो के नहीं कर सकती मदद?
लीना बनौधा
हरिद्वार। कोरोना वायरस वैश्विक महामारी ने बडे-बडे देशों को भी हिलाकर रख दिया हैं वहां पर हजारों की संख्या में लोगों की मौत के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी धाराशाही कर दिया है। जिससे भारत भी अछुता नहीं रहा है, लेकिन भारत में कोरोना वायरस को लेकर अन्य देशों के मुकाबले काफी राहत हैं। भारत में कोरोना वायरस से बचने के लिए देशभर में लाॅकडाउन जारी है। लेकिन साथ ही मध्य वर्गीय लोगों व व्यवसाये करने वालों के लिए अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए लाॅकडाउन से जुझना भी पड़ रहा है। ऐसा नहीं कि उनको अपनी व परिवार की जान की परवाह नहीं हैं लेकिन अगर दूसरा पहलु भी देखा जाए तो उनकी स्थिति भूखे मारने से भी कम नहीं है। भले ही कई समाजिक संस्थाए व सरकार द्वारा गरीब, बेसहारा, यात्रियों, मजदूरों आदि को राहत देने में जुटी है। लेकिन वहीं एक तबका ऐसा भी हैं कि जो मध्य वर्गीय है। जोकि छोटा मोटा कारोबार करते हुए अपने परिवार का भरण पोषण करता रहा हैं लेकिन आज स्थिति ऐसी आन पड़ी हैं कि उसको अपना परिवार का पेट भरने के लिए सोचना पड़ रहा है। मध्यम वर्गीय लोगों के सामने समस्या यह भी आ रही हैं कि वह अपने सम्मान के आगे किसी के सामने हाथ फैलाने से भी सकोच कर रहा है। इस वैश्विक महामारी में लाॅकडाउन के दौरान लोगों की मदद करते वक्त वीडियों व फोटो लेने का एक ऐसा प्रचलन चल पड़ा है कि लाॅकडाउन में विपरीत परिस्थिति में सम्मानजनक लोगों के लिए मदद मांगने में शर्मिदगी महशूस कर रहा है। लॉकडाउन का समय एक माह से भी अधिक हो चुका हैं ऐसे में रोजाना कमा कर खाने वाले मध्य वर्ग के लोगों के लिए बडी मुश्किल आन पड़ी है।किसी तरह एक माह तक तो इस वर्ग ने अपना व परिवार का पेट तो पाल लिया, लेकिन अब मुश्किल आन पड़ी है। अभी पता नहीं कितने दिन ओर लॉकडाउन चलता हैं यह अभी फिलहाल कहा नहीं जा सकता, मगर मध्य वर्गीय परिवार के लिए एक—एक दिन मुश्किल भरे गुजरने वाले है। मध्य वर्गीय अगर परिवार के भूख को देखकर लोगों से मदद मांगे को आगे आये तो जहन में वीडियों व फोटो वाली मदद आडे आ रही है। सवाल यह उठता हैं कि क्या ऐसी संस्थाए व लोग जो वीडीयों व फोटो जरूरतमंदों की मदद करते वक्त उतार रहे हैं वह अपनी शान व दिखावे के लिए ऐसा कर रहे हैं? अगर वास्तव में वह जरूरमंदों की इस परेशानी भरी घड़ी में मदद करना ही चाहते हैं तो वीडियों व फोटो की क्या जरूरत? ऐसा नहीं कि वीडियों व फोटो केवल अपने रिकार्ड के लिए ही रखी जा रही हो, मगर ऐसा नहीं उनको मीडिया को उपलब्ध कराया जा रहा हैं। जिसको देखकर मध्य वर्गीय लोग लाॅकडाउन परेशानी की घडी में लोगों से मदद मांगने से हिचकिचा रहे है। क्या ऐसा सम्भव नहीं कि संस्थाएं व दानवीर बिना वीडियों व फोटो उतारे बिना जरूरतमंदों की मदद करें। अगर उनको अपनेे अच्छे कार्यो को समेट कर रखने के लिए वीडियों व फोटो उतारनी हैं तो वह उनको मीडिया को उपलब्ध् न कराये। ताकि ऐसे लोग जोकि मध्य वर्ग से तालुक रखने वाले लोग भी खुलकर सामने आकर मदद लेने में शर्मिदगी महशूस न करें।