
पुलिस प्रशासन ने श्रद्धालुओं को व्यवस्थित व सुरक्षा के किये पुख्ता इंतजाम
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। पितृ अमावस्या पर अपने पितृो के निमित मोक्ष प्राप्ति के लिए तर्पण, श्रा़द्ध, हवन करने के लिए श्रद्धालुओं का मायापुर स्थित नारायणी शिला मन्दिर में तड़के से ताता लगा रहा। पुलिस प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं को व्यवस्थित व सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे। नारायणी शिला पर विभिन्न प्रांतांे से भारी संख्या में श्रद्धालुओं का अपने-अपने पितृों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए भीड उमड़ी रही।
पितृ अमावस्या, जिसे सर्व पितृ अमावस्या या पितृ विसर्जन अमावस्या भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। यह दिन पितरों (पूर्वजों) के सम्मान और श्रद्धा के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के 16 दिनों के दौरान, पितृलोक से हमारे पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों से उनके लिए तर्पण और श्राद्ध की अपेक्षा करते हैं।
सर्व पितृ अमावस्या इन पितरों की पृथ्वी से विदाई का दिन होता है। इस दिन सभी पितर अपने लोक को वापस लौट जाते हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें अपने पूर्वजों की मृत्यु की सही तिथि याद नहीं होती। वे इस दिन सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों के लिए एक साथ श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। पितृ अमावस्या पितरों की आत्मा की शांति के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन किए गए दान और तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं।
कई पौराणिक कथाएं पितृ अमावस्या के महत्व को दर्शाती हैं। एक कथा के अनुसार, जब महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उनका तर्पण कैसे किया जाए, तब भगवान विष्णु ने पितृ पक्ष की अंतिम अमावस्या पर सभी पितरों का एक साथ तर्पण करने की सलाह दी थी।
एक अन्य कथा अक्षोदा नामक एक तपस्वी से संबंधित है, जिन्हें पितरों द्वारा श्राप दिया गया था। बाद में पितरों ने उन्हें श्राप से मुक्त होने का वरदान दिया और यही अक्षोदा बाद में महर्षि पाराशर की पत्नी और वेदव्यास की माता सत्यवती बनीं। यह कथा भी पितरों के महत्व और उनके श्राप और आशीर्वाद के प्रभाव को दर्शाती है।
पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण करने से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन किए गए दान और तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। पितृ अमावस्या एक ऐसा दिन है जो पूर्वजों के प्रति सम्मान, श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है, और उन्हें याद करके उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।
हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला का इतिहास एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसका वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। एक बार गयासुर नामक एक राक्षस भगवान विष्णु के श्रीविग्रह (मूर्ति) को लेकर भाग गया। भगवान विष्णु ने जब गयासुर पर प्रहार किया, तो उनका श्रीविग्रह तीन भागों में टूट गया। शीर्ष भाग ब्रह्मकपाल (बद्रीधाम) में गिरा, चरण गयाजी में गिरे और कंठ से नाभि तक का भाग हरिद्वार में नारायणी शिला के रूप में स्थापित हुआ। भगवान ने गयासुर को मोक्ष का वरदान दिया और घोषणा की कि ये तीनों स्थान पितृ कर्मों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। जो भी इन स्थानों पर श्राद्ध, पिंडदान या तर्पण करेगा, उसके पितरों को मोक्ष प्राप्त होगा।
नारायणी शिला को पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है। यहाँ पर पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और परिवार में सुख-शांति आती है। यह माना जाता है कि नारायणी शिला के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को भूत-प्रेत का भय होता है, उन्हें भी यहाँ आकर सुकून मिलता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि नारायणी शिला में साक्षात भगवान विष्णु का वास है, जिससे यह स्थान और भी पवित्र हो जाता है।