पुलिस ईमानदारी व कर्मठता के साथ मिशन हौसला अभियान में जुटी
सीपीयू कुछ दरोगा काली वर्दी की दिखा रहे हनक, जनता में रोष
कोरोना काल में सीपीयू की एक भी तस्वीर मददगार के तौर पर नहीं दिखी
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। उत्तराखण्ड डीजीपी के मिशन हौसला अभियान को कुछ सीपीयू अधिकारी पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे है। जहां एक ओर उत्तराखण्ड का जवान अपनी ड्यूटी को पूरी ईमानदारी व कर्मठता के निभाते हुए मिशन हौसला अभियान से सीधा जुडा हुआ है। जिसके तहत प्रदेश का पुलिस अधिकारी व कर्मी जरूरमंदों की मददगार बना है। मिशन हौसला के तहत चल रहे अभियान की जमकर तारिफ हो रही है। लेकिन वहीं कुछ सीपीयू के अधिकारी अपनी काली वर्दी की हनक दिखाकर व्यापारियों व आम लोगों को प्रताडित करने से बाज नहीं आ रही है। जिनमें हाल ही में शहर का एक चर्चित मामला सभी के सामने है। जिसमें एक सीपीयू दरोगा ने जिस तरिके से मांगी गयी सूचना को वापस लेने के लिए वरिष्ठ पत्रकार को धककाया था। जिसको लेकर समाज में जहां पुलिस के मददगार की छवि बनकर उभरी हैं वहीं इस मामले में कही न कही पुलिस की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है।
बताते चले कि उत्तराखण्ड डीजीपी अशोक कुमार द्वारा कोरोना काल में सकरात्मक सोच के तहत प्रदेश की जनता के मदद के लिए राहत भरा फैसला लेते हुए मिशन हौसला अभियान शुरू किया गया। जिसके माध्यम से पहाड़ों के दुगर्म स्थानों से लेकर मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों को कोरोना महामारी में आक्सीजन सिलेण्डर से लेकर दवाओं और राशन वितरण करने का जो सहरानीय पहल की है। उसकी हर क्षेत्र में प्रशंसा की जा रही है। प्रदेश के डीजीपी के मिशन हौसला अभियान ने जहां जरूरमंदों के लिए उत्तराखण्ड की पुलिस देवदूत बनकर उभरी और लोगों में पुलिस की छवि को लेकर जो धारणा लोगों में बनी थी उसको पूरी तरह बदलकर एक अच्छे मित्र व परिवार के सदस्य के रूप में बनकर उभरी है।
कोरोना काल में उत्तराखण्ड पुलिस की जितनी तारीफ कोरोना काल में की जाए वह कम है। लेकिन सीपीयू के कुछ अधिकारी मित्र व देवदूत बनी पुलिस की छवि को तलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे है। कोरोना काल में हम सब ने पुलिस के आलाधिकारियों से लेकर एक कांस्टेबल तक को मिशन हौसला के तहत जरूरतमंदों की मददगार के रूप में देखा और परखा है। लेकिन एक भी तस्वीर अभी तक सीपीयू अधिकारी व कांस्टेबल की मददगार के रूप में नहीं दिखलाई दी है। जहां खाकी के प्रति लोगों की सोच बदली हैं जनता उनको अब अपना दोस्त व हमदर्द मानकर उनपर पूरा विश्वास कर रही है। तभी तो कोरोना काल में परेशान लोगों को रिश्तेदार व पडोस से कोई मदद नहीं मिलती तो बेझझक दिन हो या फिर रात पुलिस उनकी उमीदों पर खरा उतर रही है।
वहीं अगर हम सीपीयू की बात करे तो सीपीयू में सभी अधिकारी हेकडीबाज व काली वर्दी की हनक दिखाने वाले नहीं है। उनमें अच्छे व ईमानदार और कत्र्तव्यनिष्ठ है। मगर चंद अधिकारियों व कर्मियों की वजह से पूरी सीपीयू बदनाम हो रही है। कोरोना काल में सीपीयू के कुछ अधिकारियों को अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर लोगों को परेशान करने का शोर सुनाई दिया है।
जिनमें शहर के भीतर इनदिनों सब से ज्यादा चर्चित मामला सीपीयू दरोगा दिनेश पंवार द्वारा एक अखबार के कार्यालय पर पहुंचकर आरटीआई के तहत मांगी गयी सूचना से भन्नका कर वरिष्ठ पत्रकार को धमकाने का मामले का शोर सुनाई दे रहा है। इस मामले को लेकर सवाल तो कई खडे हो रहे है। एसएसपी के आदेश पर मामले की जांच शुरू हो चुकी है।
इसी तरह का एक ओर मामला रेलवे रोड पर बीते दिन सुनने को मिला कि ब्रेकरी की दुकान बंद करने के दौरान अचानक सीपीयू दरोगा पवन नौटियाल व कांस्टेबल मेहताब अली पहुंचे। आरोप हैं कि सीपीयू दरोगा द्वारा व्यापारी को चालान की धककी देना शुरू किया तो इतने में ही आसपास के लोग एकत्रित हो गये। सीपीयू दरोगा व कांस्टेबल ने स्थिति की नजाकत को देखते हुए वहां से चले गये।
वहीं एक शहर के सम्भ्रांत नागरिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गत दिनों व घर से पत्नी की दवा लेने के लिए सीटी हाॅस्पिटल के नीचे मेडिकल स्टोर पर जा रहा था। इसी दौरान सीपीयू दरोगा ने उनको रोक लिया। जब उन्होंने चिकित्सक का पर्चा दिखाकर पत्नी की दवा लेने जाने की बात कही। आरोप हैं कि सीपीयू दरोगा ने संभ्रात व्यक्ति को खरी खोटी सुनाते हुए काफी अभद्रता की गयी। जहां मिशन हौसला के तहत जरूरतमंदों के लिए पुलिस मददगार बनी हैं वहीं सीपीयू के कुछ अधिकारी दवा लेने जाने वाले को प्रताडित करते हुए उनको घर में वापस भेजने का काम कर रहे है। ऐसे सीपीयू अधिकारी कही न कही मिशन हौसला अभियान में रोडा बने हुए है।
