
जनता के लिए महामारी बना काल, मोटा खर्च पर भी नहीं मिल रहा इलाज
प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग मौन, शहर में मौतों व कालाबारियों का मच रहा शोर
मुकेश वर्मा
हरिद्वार। कोरोना काल कुछ निजी हाॅस्पिटल संचालकों व कालाबारियों के लिए बम्पर लाटरी बन कर आया है। जबकि जनता के लिए कोरोना महामारी काल बना हुआ है। कोरोना काल में हर तरफ मरीजों को आक्सीजन, वैंटिलेटर, बैड, रेमडेसिविर इंजेक्शन की मारामारी व कालाबाजारी और मौत की खबरें सुनने को मिल रही है। सिस्टम मौन व लाचार बना हुआ है, मरीजों के परिजन अपने मरीजों की जान बचाने के लिए हर मुमकिन कौशिश में लगे हैं और उनको अच्छे से अच्छा उपचार दिलाने के लिए इध्रर से उधर दौड़ लगा रहे है। हाॅस्पिटल के मुंह मांगा पैसा देने के बाद भी उपचार के नाम पर उनको केवल मायूसी ही हाथ लग रही है।
कुछ निजी हाॅस्पिटलों ने तो कोरोना इलाज गोल्डन कार्ड, आयुष्मान कार्ड और हैल्थ पाॅलिसी पर करने से ही इंकार कर दिया है। केवल कैश पर ही वो भी प्रतिदिन हजारों का बैड देकर उपचार कर रहे है, इतनी भारी भरकम रकम देकर भी मरीजों को उपचार के नाम पर झुझना देकर उन्हें भगवान भरोसे छोडा जा रहा है। तीर्थनगरी में कोरोना ने हर व्यक्ति को रूला रहा हैें, जिधर देखों कोरोना से पीडित परिवार अपने मरीज को लेकर दर-दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर है।
कोरोना काल भले की आम जनता के लिए मुसीबत बन कर आया हैं, लेकिन कोरोना कुछ निजी हाॅस्पिटल संचालकों व कालाबाजारियों के लिए बम्पर लाटरी बन कर नोट बटोरने का समय आया है। जो लोगों की मजबूरी व लाचारी का जमकर फायदा उठाकर एक ही दिन में करोड पति बनने की तमन्ना रखे हुए है। कोरोना के खौफ से हर कोई अपने मरीज को अच्छे से अच्छा उपचार दिलाने के लिए एक के बाद एक हाॅस्पिटल की ओर दौड लगा रहा है।
लोगों को उनको अपने मरीजों के लिए बैड, आक्सीजन, वैंटिलेटर और रेमडेसिविर इंजेक्शन आदि के लिए गिड़गिडना पड़ रहा है। इस कोरोना काल में कुछ हाॅस्पिटल संचालकों को माला माल और गरीब व मध्य वर्गीय लोगों को कर्जदार बना दिया है। उसके बावजूद भी लोग अपने मरीज को अच्छा उपचार दिलाने के लिए रोजना हजारों रूपये खर्च करके भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे है। ऐसा नहीं कि ऐसे निजी हाॅस्पिटलों की मनमानी की जानकारी प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग को नहीं है। मगर वह भी मूक दर्शक बना चुपचाप हाॅस्पिटल के खेल को देख रहा है।
प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग ऐसे हाॅस्पिटलों के खिलाफ कोई शिंकजा न कसने और कोरोना पीडितों को उपचार के लिए कोई ठोस कारगर कदम न उठाने को लेकर लोगों में रोष है। कोरोना से पीडित लोगों का आरोप हैं कि कुछ निजी हाॅस्पिटल संचालकों ने गोल्डन कार्ड, आयुष्मान कार्ड और हैल्थ पाॅलिसी को भी मानने से भी इंकार कर दिया है।
निजी हाॅस्पिटल केवल कैश पर ही कोरोना का उपचार देने की बात कर रहे है। ऐसा नहीं लोगों ने अपने मरीज की जान बचाने के लिए हाॅस्पिटल की मनमानी फीस रोेजना की हजारों दी जा रही है। मगर उसके बावजूद भी उनके मरीजों की सही से केयर और ना ही उनका सही दिशा में उपचार दिया जा रहा है। शहर के हाॅस्पिटलों की हालत यह हैं कि मरीजों के रोजना के हजारों खर्च करने के बाद भी मरीजों को भगवान भरोसे छोडा जा रहा है।